आदरणीय भंवर मेघवंशी जी, आपने मनुष्य और मनुष्यता के हक में, अन्याय और शोषण के खिलाफ एक बड़ी जंग लड़ी है, आपने सही कहा है- अपनी पसंद का उत्पाद खरीदना हमारा अधिकार है, शांतिपूर्ण व गरिमापूर्ण तरीके से रोजगार करना हमारा अधिकार है, इसे हमसे कोई नहीं छीन सकता है। धन्यवाद!!!
अंत में विजयशंकर चतुर्वेदी के शब्द - आखिर कब तक
देस छूट गया रास्ते में छूट गए दोस्त कुछ जरूरी किताबें छूट गईं पेड़ तो छूटे अनगिनत मूछोंवाले योद्धा भी छूट गए जिसे लेकर चले थे वह वज्र छूट गया
छूट गया ईमान पंख छूट गए देह से हड्डियों से खाल छूट गई आखिर कब तक नहीं छूटेगी सहनशक्ति? Awadhesh Kr. Singh Varanasi,U.P.9935111101,9235311101
आदरणीय भंवर मेघवंशी जी, आपने मनुष्य और मनुष्यता के हक में, अन्याय और शोषण के खिलाफ एक बड़ी जंग लड़ी है, आपने सही कहा है- अपनी पसंद का उत्पाद खरीदना हमारा अधिकार है, शांतिपूर्ण व गरिमापूर्ण तरीके से रोजगार करना हमारा अधिकार है, इसे हमसे कोई नहीं छीन सकता है। धन्यवाद!!!
अंत में विजयशंकर चतुर्वेदी के शब्द - आखिर कब तक
देस छूट गया रास्ते में छूट गए दोस्त कुछ जरूरी किताबें छूट गईं पेड़ तो छूटे अनगिनत मूछोंवाले योद्धा भी छूट गए जिसे लेकर चले थे वह वज्र छूट गया
छूट गया ईमान पंख छूट गए देह से हड्डियों से खाल छूट गई आखिर कब तक नहीं छूटेगी सहनशक्ति? Awadhesh Kr. Singh Varanasi,U.P.9935111101,9235311101
rcm ke aam upbhokta ka dard samjhne or tarkpurn/bebak vicharo ke liye tahedil se shukriya meghvansi ji...
ReplyDeleteआदरणीय भंवर मेघवंशी जी,
ReplyDeleteआपने मनुष्य और मनुष्यता के हक में, अन्याय और शोषण के खिलाफ एक बड़ी जंग लड़ी है,
आपने सही कहा है- अपनी पसंद का उत्पाद खरीदना हमारा अधिकार है, शांतिपूर्ण व गरिमापूर्ण तरीके से रोजगार करना हमारा अधिकार है, इसे हमसे कोई नहीं छीन सकता है।
धन्यवाद!!!
अंत में विजयशंकर चतुर्वेदी के शब्द -
आखिर कब तक
देस छूट गया
रास्ते में छूट गए दोस्त
कुछ जरूरी किताबें छूट गईं
पेड़ तो छूटे अनगिनत
मूछोंवाले योद्धा भी छूट गए
जिसे लेकर चले थे वह वज्र छूट गया
छूट गया ईमान
पंख छूट गए देह से
हड्डियों से खाल छूट गई
आखिर कब तक नहीं छूटेगी सहनशक्ति?
Awadhesh Kr. Singh
Varanasi,U.P.9935111101,9235311101
आदरणीय भंवर मेघवंशी जी,
ReplyDeleteआपने मनुष्य और मनुष्यता के हक में, अन्याय और शोषण के खिलाफ एक बड़ी जंग लड़ी है,
आपने सही कहा है- अपनी पसंद का उत्पाद खरीदना हमारा अधिकार है, शांतिपूर्ण व गरिमापूर्ण तरीके से रोजगार करना हमारा अधिकार है, इसे हमसे कोई नहीं छीन सकता है।
धन्यवाद!!!
अंत में विजयशंकर चतुर्वेदी के शब्द -
आखिर कब तक
देस छूट गया
रास्ते में छूट गए दोस्त
कुछ जरूरी किताबें छूट गईं
पेड़ तो छूटे अनगिनत
मूछोंवाले योद्धा भी छूट गए
जिसे लेकर चले थे वह वज्र छूट गया
छूट गया ईमान
पंख छूट गए देह से
हड्डियों से खाल छूट गई
आखिर कब तक नहीं छूटेगी सहनशक्ति?
Awadhesh Kr. Singh
Varanasi,U.P.9935111101,9235311101